शैक्षणिक प्रशासन और प्रबंधन

**अर्थ और परिभाषा:**

– **शैक्षणिक प्रशासन:** इसमें शैक्षणिक संस्थाओं के संगठन, समन्वय और निर्देश के संबंध में व्यवस्था होती है। यह निर्णय लेना, योजना बनाना, बजट, स्टाफिंग और अन्य प्रशासनिक कार्यों को सुनिश्चित करना शामिल है ताकि स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालयों का चिकित्सा कार्य सुचारू रहे।

– **शैक्षणिक प्रबंधन:** यह संसाधनों का दक्ष उपयोग, नीतियों का कार्यान्वयन, और शैक्षणिक संस्थानों में गतिविधियों के समन्वय के प्रति ध्यान केंद्रित करता है ताकि पूर्वनिर्धारित लक्ष्यों को हासिल किया जा सके।

 

  1. **अवधारणा:**

– शैक्षणिक प्रशासन और प्रबंधन विभिन्न पहलुओं को समाहित करते हैं जैसे योजना, संगठन, कर्मचारियों की नियुक्ति, निर्देशन, नियंत्रण, और मूल्यांकन के अंश और कार्यों में संगठित गतिविधियों के कोआर्डिनेशन।

 

  1. **विस्तार:**

– **संस्थानिक स्तर:** इसमें शैक्षणिक संस्थानों के व्यवस्थापन को सम्मिलित किया जाता है जैसे कि स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, और प्रशिक्षण केंद्र। इसमें रणनीतिक योजना, पाठ्यक्रम विकास, कर्मचारी भर्ती, छात्र प्रवेश, वित्तीय प्रबंधन, और सुविधाओं का अनुरक्षण शामिल है।

– **प्रशासनिक स्तर:** यह जिला, राज्य, या राष्ट्रीय स्तर पर नीतियों, विनियमों, और प्रक्रियाओं का निर्माण और कार्यान्वयन सम्मिलित करता है।

**नेतृत्व और शासन:** इसमें दृष्टिपरिवर्तन के नेतृत्व का प्रदान, सकारात्मक संगठनात्मक संस्कृति को बढ़ावा देना, जवाबदेही और पारदर्शिता को प्रोत्साहित करना, और शैक्षणिक प्रशासन और प्रबंधन में नैतिकता को सुनिश्चित करना शामिल होता है।

**संसाधन प्रबंधन:** यह मानव, वित्तीय, और भौतिक संसाधनों का प्रबंधन शामिल है ताकि छात्रों और हितधारकों की शैक्षणिक आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके।

– **शैक्षणिक योजना और विकास:** इसमें दीर्घकालिक रणनीतिक योजना, लक्ष्यों का सेट करना, और शैक्षणिक प्रोग्रामों की स्थायी उन्नति के लिए प्रयास करना शामिल है।

– **समुदाय और हितधारक संगठन:** यह माता-पिता, समुदाय, व्यवसाय, और अन्य हितधारक संगठनों के साथ साझेदारी बनाने को समर्थन करता है ताकि शैक्षणिक पहलों का समर्थन किया जा सके।

 

शैक्षणिक प्रशासन और प्रबंधन विभिन्न गतिविधियों को समाहित करते हैं जो छात्रों, समाज, और हितधारकों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए शैक्षणिक संस्थानों की कारगर प्रणाली और सुधार को सुनिश्चित करते हैं।

भारत में शैक्षिक प्रशासन का विकास और अवधारणा

भारत में शैक्षिक प्रशासन का विकास और अवधारणा ने उत्तराधिकारी विकासों, शैक्षिक नीतियों, और प्रौद्योगिकी उन्नतियों के प्रभाव से महत्वपूर्ण परिवर्तन किए हैं। यहाँ भारत में शैक्षिक प्रशासन के विकास और अवधारणा का अवलोकन है:

 

  1. **औपनिवेशिक काल (स्वतंत्रता से पहले):**

– औपनिवेशिक काल में, भारत में शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य के हितों को सेवा करना था।

– ब्रिटिश ने 1882 में हंटर आयोग और 1854 में वुड्स डिस्पैच के परिचय के साथ एक केंद्रीकृत प्रशासन प्रणाली स्थापित की, जो भारत में आधुनिक शिक्षा की नींव रखते हैं।

– शैक्षिक प्रशासन अत्यंत केंद्रीकृत था, जिसमें नियंत्रण को ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार के हाथों में था और बाद में भारतीय सिविल सेवा के हाथों में था।

– उत्तरदायित्व अंग्रेज शासन के लिए वफादार भारतीय वर्ग को उत्पन्न करने के लिए पश्चिमी ज्ञान को बढ़ावा देने के लिए इंग्लिश-माध्यम की शिक्षा को बढ़ावा दिया गया।

– विश्वविद्यालय जैसी संस्थाएं स्थापित की गईं, लेकिन वे प्राथमिकतः लिपिकों और प्रशासनिक कर्मचारियों का उत्पादन करने के लिए थीं ब्रिटिश प्रशासन के लिए।

 

  1. **स्वतंत्रता के पश्चात् काल:**

– 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद, भारत शिक्षा को लोकतांत्रिक करने और समाज के सभी वर्गों के लिए पहुँचनीय बनाने का मिशन पर निकला।

– सरकार ने शैक्षिक संरचना को विस्तारित करने, साक्षरता को बढ़ावा देने, और शिक्षा तक पहुंच में असमानताओं को खत्म करने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए।

– कोठारी आयोग (1964-66) ने स्वतंत्र भारत में शैक्षिक योजना और प्रशासन की नींव रखी।

– 1968 में शैक्षिक नीति और इसके बाद की संशोधनों ने देशभर में उच्च शिक्षा के लिए गुणवत्ता, गुणवत्ता, और पहुंच को बढ़ावा देने का उद्देश्य रखा।

– यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (यूजीसी) और आल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (एआईसीटीई) जैसे संस्थानों की स्थापना ने उच्च शिक्षा के नियंत्रण और मानकों को बनाए रखने में मदद की।

 

  1. **आधुनिक समय:**

– हाल ही में, शैक्षिक प्रशासन में विवादास्पदीकरण और अधिक स्वतंत्रता की ओर एक प्रमुख बदलाव आया है।

– 2009 में शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम ने 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा को प्रावधान किया, जिसमें स्थानीय निकायों को स्कूल का प्रबंधन करने और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने का उद्देश्य रखा गया।

– डिजिटल प्रौद्योगिकी ने शैक्षिक प्रशासन को क्रांतिकारी बना दिया है, ऑनलाइन सीखने के प्लेटफ़ॉर्म, डिजिटल क्लासरूम, और ई-सरकार उपायों के प्रस्तावना के साथ।

– ध्यान उत्तरदायित्व पर शिक्षा, कौशल विकास, और जीवनभर की सीखने की ओर है, जो ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था की मांगों को पूरा करने के लिए है।

– सार्वजनिक-निजी साझेदारी (पीपीपी) शैक्षिक प्रशासन का एक महत्वपूर्ण पहलू बन गई है, जहां निजी संस्थानों को शिक्षा तक पहुँचने का महत्वपूर्ण रोल निभाने में मदद मिली है और गुणवत्ता में सुधार हुआ है।

 

संक्षेप में, भारत में शैक्षिक प्रशासन का विकास एक ओर ब्रिटिश शासन द्वारा केंद्रीय नियंत्रण की चरम प्रतिष्ठा से उत्तराधिकारी स्वतंत्रता और बहुमत के दृष्टिकोण की ओर परिवर्तन को दर्शाता है तकनीकी और अधिक स्वतंत्रता की ओर की एक प्रतिबिम्ब है जो सभी के लिए समावेशी और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को प्रोत्साहित करता है।

1986 के बाद के नीति विकासों में केंद्रीकृत योजनाओं

भारत में शिक्षा क्षेत्र में 1986 के बाद के नीति विकासों में केंद्रीकृत योजनाओं और विस्तार की दिशा में कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं। नीति में विवादास्पदीकरण, जनहित में प्रशासन की प्राथमिकता, स्थानीय स्तर पर निर्णय लेने का बल, और शिक्षा क्षेत्र में निजी संगठनों के प्रभाव का बढ़ना शामिल है। यहां कुछ मुख्य विकास हैं:

 

  1. **केंद्रीकृत योजनाएं (Centrally Sponsored Schemes – CSS):**

– 1986 के बाद, केंद्र ने राज्यों को शिक्षा क्षेत्र में विकास के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए केंद्रीकृत योजनाएं शुरू की।

– ये योजनाएं केंद्रीय सरकार और राज्य सरकार के बीच साझेदारी पर आधारित होती हैं, जहां केंद्र शिक्षा के विभिन्न पहलों के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करता है और राज्य सरकार नीतियों को कार्यान्वित करती है।

– इन योजनाओं में सरकारी स्कूलों के अध्यापकों की भत्तों का वृद्धि, छात्रों के लिए बुनियादी शिक्षा के लिए अनुदान, और शिक्षा के अन्य क्षेत्रों में अधिक निवेश शामिल हैं।

 

  1. **दरकिनार किए जाने वाले शिक्षा योजनाएं (Decentralized Education Development Schemes):**

– विकास की नई दिशा में, कई योजनाओं में स्थानीय स्तर पर निर्णय लेने की बढ़ती हुई आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, केंद्रीय सरकार ने कई दरकिनार किए जाने वाले शिक्षा योजनाएं शुरू की हैं।

– इन योजनाओं में, स्थानीय समुदायों को शिक्षा के विभिन्न पहलों में सहयोग और निर्देशित किया जाता है, जैसे कि शिक्षा के गुणवत्ता में सुधार, शैक्षिक सामग्री की उत्पत्ति, और सामुदायिक सहभागिता।

 

  1. **शिक्षा नीतियाँ:**

– 1986 के बाद, कई शिक्षा नीतियाँ और योजनाएं शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों में बदलाव लाने के लिए शुरू की गईं। इनमें से कुछ मुख्य नीतियाँ शिक्षा के स्तर में वृद्धि, समावेशी शिक्षा, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के प्राप्ति को बढ़ावा देने, और शिक्षा के लिए वित्तीय सहायता को सुनिश्चित करने के लिए थीं।

 

  1. **सांविधिकीकृत उपाय:*

– केंद्रीकृत योजनाओं के अलावा, सांविधिकीकृत उपाय भी शिक्षा क्षेत्र में विकास के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनमें बच्चों को वित्तीय सहायता, शिक्षा सामग्री, और शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए अनुदान प्रदान किया जाता है।

 

केंद्रीकृत योजनाओं और दरकिनार किए जाने वाले शिक्षा योजनाओं के माध्यम से, भारतीय शिक्षा क्षेत्र में अधिक समानता, गुणवत्ता, और पहुंच के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयास किया जा रहा है।

एक उदाहरण के रूप में, ‘सर्वशिक्षा अभियान’ (Sarva Shiksha Abhiyan – SSA) एक केंद्रीकृत योजना है जो 2001 में शुरू की गई थी। इसका उद्देश्य बुनियादी और मुफ्त शिक्षा के प्राप्ति को सुनिश्चित करना था ताकि हर बच्चा आधिकारिक रूप से स्कूल जा सके।

 

इस योजना के तहत, केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच साझेदारी के रूप में वित्तीय सहायता प्रदान की गई। राज्य सरकारें शिक्षा क्षेत्र में विभिन्न पहलों को कार्यान्वित करने के लिए अनुदान प्राप्त करती हैं, जैसे कि शिक्षकों की भर्ती, शिक्षा सामग्री की प्रदान, और स्कूल के अधिकारिक रूप से रखरखाव।

 

इस योजना के माध्यम से, भारत ने मुफ्त और बुनियादी शिक्षा के प्राप्ति को बढ़ावा दिया है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में। यह योजना गरीबी, जाति, और लिंग के आधार पर असमानता को कम करने में मदद करती है और उन बच्चों को शिक्षा के माध्यम से समाज की मुख्यधारा में शामिल करने में मदद करती है जो पहले छूट जाते थे।

एक और उदाहरण है “राष्ट्रीय मध्यमिक शिक्षा अभियान” (Rashtriya Madhyamik Shiksha Abhiyan – RMSA)। यह भी एक केंद्रीकृत योजना है जो 2009 में शुरू की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य है मध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में पहुँच को बढ़ावा देना और इसमें गुणवत्ता को सुनिश्चित करना है।

 

RMSA के तहत, केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच साझेदारी के रूप में वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। इस योजना के माध्यम से, मध्यमिक शिक्षा के स्तर को बढ़ावा दिया जा रहा है, स्कूलों की अधिकारिक रूप से रखरखाव में सुधार किया जा रहा है, और विभिन्न प्रकार की अधिकृत और अनुकूलित शिक्षा प्रदान की जा रही है।

 

यह योजना मुख्यतः रूरल और सेमी-उर्बन क्षेत्रों में मध्यमिक शिक्षा के लिए है, जहाँ शिक्षा के प्राप्ति में कमी होती है। RMSA के माध्यम से, विद्यार्थियों को अधिक मुक्त और समान अवसर प्राप्त होते हैं और वे अपने कैरियर के लिए अधिक सक्षम बनते हैं।

 

 

**शैक्षिक प्रबंधन के सिद्धांत:**

शैक्षिक प्रबंधन के सिद्धांत और प्रकार इस प्रकार हैं:

 

  1. **न्याय और पहुंच:** शैक्षिक प्रबंधन को सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी छात्रों के लिए समान अवसर हों, चाहे वह उनके पृष्ठभूमि, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, या क्षमताओं की हो।

 

  1. **गुणवत्ता शिक्षा:** प्रबंधकों को संस्था द्वारा प्रदान की जाने वाली शिक्षा की गुणवत्ता को बनाए रखने और बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए, जिसमें अकादमिक उत्कृष्टता, छात्रों का बोधक और संपूर्ण विकास शामिल है।

 

  1. **जवाबदेही:** प्रबंधकों को संस्था के प्रदर्शन और परिणामों के लिए उत्तरदायित्वपूर्ण होना चाहिए, सुनिश्चित करते हुए कि संसाधनों का प्रभावी उपयोग, पारदर्शिता, और अपेक्षित लाभ हो।

 

  1. **समावेशीता:** शैक्षिक प्रबंधन को समावेशीता और विविधता को बढ़ावा देना चाहिए, जिससे सभी छात्र, शिक्षक, और कर्मचारी का सम्मानित और मूल्यांकन किया जाए।

 

  1. **सहयोग:** प्रबंधकों को सहयोग और समर्थन को बढ़ावा देना चाहिए, जैसे शिक्षक, कर्मचारी, माता-पिता, और समुदाय के बीच सहयोग और साझेदारी को बढ़ावा देना।

 

  1. **निरंतर सुधार:** शैक्षिक प्रबंधन को लगातार सुधार और नवाचार पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, प्रमाण-परम्परागत प्रथाओं को अपनाने और शैक्षिक आवश्यकताओं और परिस्थितियों में परिवर्तन को समझने के लिए।

 

**शैक्षिक प्रबंधन के प्रकार:**

 

  1. **स्कूल प्रबंधन:** स्कूल प्रबंधन में एकल स्कूलों का प्रबंधन शामिल है। स्कूल प्रबंधक, उप-प्रधान, और अन्य प्रबंधक स्कूल की दैनिक आयाम में कार्यों की निगरानी, शैक्षिक नीतियों को कार्यान्वित करना, और एक शिक्षा अधिक परिसर को बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार होते हैं।

 

  1. **जिला प्रबंधन:** जिला प्रबंधन में एक से अधिक स्कूलों का प्रबंधन होता है। जिला प्रबंधक, जिला शिक्षा अधिकारी, और अन्य जिला स्तरीय प्रबंधक जिले के भीतर शैक्षिक कार्यक्रम की समन्वयन करते हैं, संसाधनों का आवंटन करते हैं, और अपने क्षेत्र में स्कूलों को समर्थन प्रदान करते हैं।

 

  1. **उच्च शिक्षा प्रबंधन:** उच्च शिक्षा प्रबंधन में कॉलेजों, विश्वविद्यालयों, और अन्य स्नातकोत्तर संस्थानों का प्रबंधन शामिल है। उच्च शिक्षा प्रबंधक, डीन, प्रोवोस्ट, और विश्वविद्यालय के अध्यक्ष विद्यालय के विभिन्न कार्यक्रमों, अनुसंधान पहलों, छात्र कार्यक्रमों, और संस्थानिक विकास का निगरानी करते हैं।

 

  1. **राज्य या राष्ट्रीय प्रबंधन:** राज्य या राष्ट्रीय प्रबंधन में शैक्षिक नीतियों का निर्धारण, विनियमन, और समन्वय शामिल होता है। शिक्षा मंत्रालय, राज्य के शिक्षा अधिकारी, और अन्य सरकारी अधिकारियों का उद्देश्य राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर शैक्षिक नीतियों का निर्धारण करना, धन का आवंटन करना, और शैक्षिक परिणामों का मॉनिटरिंग करना होता है।

 

  1. **विशेष प्रबंधन:** विशेष प्रबंधन का मतलब किसी विशेष शैक्षिक कार्यक्रम या पहल का प्रबंधन है, जैसे विशेष शिक्षा कार्यक्रम, व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम, या वयस्क शिक्षा कार्यक्रम। इन क्षेत्रों में प्रबंधकों का मुख्य ध्यान उन लक्ष्यों और चुनौतियों को पता करने में होता है जो उनके लक्ष्य जनता को प्राप्त करने में सहायक हो सकते हैं।

 

शैक्षिक प्रबंधन की भूमिका और कार्य –

 

 

  1. **उद्देश्य (Purposing):**

– शैक्षिक प्रबंधन का पहला कार्य है उद्देश्य का निर्धारण करना। इसमें शैक्षिक संस्था के लक्ष्यों, ध्येयों, और मिशन को स्पष्ट करने का काम होता है।

– उद्देश्य निर्धारित करने के बाद, शैक्षिक प्रबंधन प्रक्रिया के दौरान संगठित और स्वयं समर्थ कार्रवाई के लिए एक मार्गदर्शन प्रदान करता है।

 

  1. **योजना (Planning):**

– योजना का मुख्य कार्य है शैक्षिक लक्ष्यों और उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए क्रियाकलापों को तैयार करना।

– योजनाएं शिक्षा के क्षेत्र में संसाधनों का व्यवस्थित उपयोग, कार्यक्रमों और पाठ्यक्रमों का विकास, प्रशिक्षण की योजनाओं का निर्माण, और प्रगति की निगरानी जैसे कार्यक्रियाओं को संबोधित करती हैं।

 

  1. **संगठन (Organization):**

– संगठन का मकसद विभिन्न शैक्षिक कार्यों और प्रक्रियाओं को संगठित करना और उन्हें अनुकूलित करना है ताकि लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता मिल सके।

– संगठन में संस्थानिक संरचना, पदों का निर्धारण, जिम्मेदारियों का वितरण, और कार्यकारी क्षमता के विकास को शामिल किया जाता है।

 

  1. **सहयोग (Cooperation):**

– सहयोग का मुख्य उद्देश्य शैक्षिक कार्यक्रमों को समर्थन प्रदान करना और उन्हें सम्पन्न करने में सहायक होना है।

– सहयोग विभिन्न स्तरों, जैसे कि शिक्षक, अभिभाषक, अभिभाषिका, विद्यार्थी, और समुदाय के साथ साझेदारी का निर्माण करने के माध्यम से किया जा सकता है।

 

इन चारों कार्यों के माध्यम से, शैक्षिक प्रबंधन संस्थानों के सामग्रिक उद्देश्यों को प्राप्त करने में मदद करता है, जिससे छात्रों को सफलता के लिए संवेदनशील, सक्षम और संबलित नागरिक बनाने में मदद मिल सकती है।

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